वीरता का संदेश देने वाली कविता अपने देश से प्रेम करना और सदा उसका कल्याण सोचना सिखाता है. राष्ट्रभक्त होने का मतलब हमेशा राष्ट्र नीति का हित करना है, जो कई प्रकार से किया जा सकता है चाहे कारगिल में युद्ध करके, राष्ट्र में शिक्षा प्रदान करके, देशवासियों को देश के प्रति प्रेरणा देकर, देशभक्ति कविता आदि सभी राष्ट्र भक्ति ही हैं.
हमारे प्रसिद्ध कवियों ने फेमस देशभक्ति पर कविता लिखकर देशवासियों को जागृत करने का एक माध्यम तैयार किया था जिससे एकेडमिक स्कूल से ही बच्चों को राष्ट्र पर मर मिटने वाले धरती मां के वीर सपूतों की अद्भुत शौर्य और पराक्रम का बखान और देश हित में जानकारी प्रदान कराया जा सके.
ताकि आज की युवा पीढ़ी वीर शहीदों के त्याग, बलिदान और कुर्बानियों के महत्व को समझ सके. देश भक्ति कविता यानि Desh Bhakti Poem केवल मनोरंजन प्रदान करने के लिए नहीं है बल्कि देश में घटित उन सभी घटनाओं का एक संग्रह है जो आपको राष्ट्रिय कविता के माध्यम से देश के लिए प्रेरणा देने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है.
देशभक्ति कविता हिंदी में लिखी हुई | Desh Bhakti Poem in Hindi
बच्चे, बूढ़े, युवा, ह्रदय से देश प्रेम की भावना जागृत करने के लिए दिए गए देशभक्ति कविता का उपयोग स्वतंत्रता दिवस कविता, गणतंत्र दिवस, गांधी जयंती एवं अन्य राष्ट्रीय पर्व पर होने वाली प्रतियोगिता में शामिल कर सकते हैं और एक अनूठा संदेश देश हित में जारी कर सकते हैं.
आपके लिए 5 ऐसी देश भक्ति कविता लिखी हुई अंकित किया गया है, जिनसे अपने वतन की खुशबू मिलती है, जिसे देश के प्रसिद्ध रचनाकारों द्वारा सजाया गया है. जैसे राम प्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र किशन, रामधारी सिंह दिनकर, सुमित्रानंदन पंत, श्री गोपाल दास व्यास जी, आदी.
इन कविताओं के लिए कई रचनाकार भारत रत्न से नवाजे गए हैं जो अपने कलम से संपूर्ण भारत को देशभक्ति कविता के माध्यम से जागृत करने की कोशिश की है. आज आप उन्हीं देश प्रेम भक्ति कविता की चार पंक्तियां यहां पढ़ेंगे.
सरफ़रोशी की तमन्ना: देशभक्ति कविता
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है।।
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत।
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है।।
ए शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार।
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है।।
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान।
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है।।
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद।
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है।।
यूँ खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार-बार।
क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।।
वो जिस्म भी क्या जिस्म है जिसमें ना हो खून-ए-जुनून।
तूफ़ानों से क्या लड़े जो कश्ती-ए-साहिल में है।।
हाथ जिन में हो जुनूँ कटते नही तलवार से।
सर जो उठ जाते हैं वो झुकते नहीं ललकार से।।
और भड़केगा जो शोला-सा हमारे दिल में है।
है लिये हथियार दुशमन ताक में बैठा उधर।।
और हम तैय्यार हैं सीना लिये अपना इधर।
खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।।
हम तो घर से निकले ही थे बाँधकर सर पे कफ़न।
जान हथेली पर लिये लो बढ चले हैं ये कदम।।
जिन्दगी तो अपनी मेहमान मौत की महफ़िल में है।
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इन्कलाब।।
होश दुश्मन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज।
दूर रह पाये जो हमसे दम कहाँ मंज़िल में है।।
Author:- राम प्रसाद बिस्मिल
देशभक्ति कविता हिंदी में |Desh Bhakti Kavita
देशहित पर कविता देश की संस्कृति, सभ्यता, राष्ट्रीयता एवं सुंदरता का भी बोध कराती हैं. भारतीय संस्कृति पूरे विश्व में एक अलग और अनूठा स्थान रखती है. इसकी मिसाल पूरी दुनिया में दी जाती है. इस देश में अलग-अलग धर्म, जाति, लिंग, पंथ, समुदाय के लोग मिलजुल कर सहमती से रहते हैं.
राष्ट्र की प्रतिष्ठा देश की एकता से बनती है जो पूरे विश्व में एक नया पहचान लेकर उभरता है कि इस देश की संप्रदाय दूसरे से अलग है और यही पहचान देश प्रेम भक्ति कविता की चार पंक्तियां से मिलती है.
जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़िया करती है बसेरा।
वो भारत देश है मेरा।।
जहाँ सत्य, अहिंसा और धर्म का पग-पग लगता डेरा।
वो भारत देश है मेरा।।
ये धरती वो जहाँ ऋषि मुनि जपते प्रभु नाम की माला।
जहाँ हर बालक एक मोहन है और राधा हर एक बाला।।
जहाँ सूरज सबसे पहले आ कर डाले अपना फेरा।
वो भारत देश है मेरा।।
अलबेलों की इस धरती के त्योहार भी हैं अलबेले।
कहीं दीवाली की जगमग है कहीं हैं होली के मेले।।
जहाँ राग रंग और हँसी खुशी का चारों ओर है घेरा।
वो भारत देश है मेरा।।
जब आसमान से बातें करते मंदिर और शिवाले।
जहाँ किसी नगर में किसी द्वार पर कोई न ताला डाले।।
प्रेम की बंसी जहाँ बजाता है ये शाम सवेरा।
वो भारत देश है मेरा।।
Author:- राजेंद्र किशन
रामधारी सिंह दिनकर देशभक्ति कविता
तुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ, मैं।
मेरे प्यारे देश ! देह या मन को नमन करूँ मैं।।
किसको नमन करूँ मैं भारत ? किसको नमन करूँ मैं।
भू के मानचित्र पर अंकित त्रिभुज, यही क्या तू है।।
नर के नभश्चरण की दृढ़ कल्पना नहीं क्या तू है।
भेदों का ज्ञाता, निगूढ़ताओं का चिर ज्ञानी है।।
मेरे प्यारे देश ! नहीं तू पत्थर है, पानी है।
जड़ताओं में छिपे किसी चेतन को नमन करूँ मैं।।
तू वह, नर ने जिसे बहुत ऊँचा चढ़कर पाया था।
तू वह, जो संदेश भूमि को अम्बर से आया था।।
तू वह, जिसका ध्यान आज भी मन सुरभित करता है।
थकी हुई आत्मा में उड़ने की उमंग भरता है।।
गन्ध -निकेतन इस अदृश्य उपवन को नमन करूँ मैं।
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं।।
वहाँ नहीं तू जहाँ जनों से ही मनुजों को भय है।
सब को सब से त्रास सदा सब पर सब का संशय है।।
जहाँ स्नेह के सहज स्रोत से हटे हुए जनगण हैं।
झंडों या नारों के नीचे बँटे हुए जनगण हैं ।।
कैसे इस कुत्सित, विभक्त जीवन को नमन करूँ मैं।
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं।।
तू तो है वह लोक जहाँ उन्मुक्त मनुज का मन है।
समरसता को लिये प्रवाहित शीत-स्निग्ध जीवन है।।
जहाँ पहुँच मानते नहीं नर-नारी दिग्बन्धन को।
आत्म-रूप देखते प्रेम में भरकर निखिल भुवन को।।
कहीं खोज इस रुचिर स्वप्न पावन को नमन करूँ मैं ।
किसको नमन करूँ मैं भारत ! किसको नमन करूँ मैं।।
भारत नहीं स्थान का वाचक, गुण विशेष नर का है।
एक देश का नहीं, शील यह भूमंडल भर का है।।
जहाँ कहीं एकता अखंडित, जहाँ प्रेम का स्वर है।
देश-देश में वहाँ खड़ा भारत जीवित भास्कर है।।
निखिल विश्व को जन्मभूमि-वंदन को नमन करूँ मैं।
खंडित है यह मही शैल से, सरिता से सागर से।।
पर, जब भी दो हाथ निकल मिलते आ द्वीपांतर से।
तब खाई को पाट शून्य में महामोद मचता है।।
दो द्वीपों के बीच सेतु यह भारत ही रचता है।
मंगलमय यह महासेतु-बंधन को नमन करूँ मैं।।
दो हृदय के तार जहाँ भी जो जन जोड़ रहे हैं।
मित्र-भाव की ओर विश्व की गति को मोड़ रहे हैं।।
घोल रहे हैं जो जीवन-सरिता में प्रेम-रसायन।
खोर रहे हैं देश-देश के बीच मुँदे वातायन।।
आत्मबंधु कहकर ऐसे जन-जन को नमन करूँ मैं ।
उठे जहाँ भी घोष शांति का, भारत, स्वर तेरा है।।
धर्म-दीप हो जिसके भी कर में वह नर तेरा है।
तेरा है वह वीर, सत्य पर जो अड़ने आता है।।
किसी न्याय के लिए प्राण अर्पित करने जाता है।
मानवता के इस ललाट-वंदन को नमन करूँ मैं।।
Author:- रामधारी सिंह दिनकर
भारत माता ग्रामवासिनी – Desh Bhakti par Kavita
भारत देश न केवल धार्मिक, आध्यात्मिक, चिकित्सक एवं वैज्ञानिक दृष्टि से सर्वोत्तम और विख्यात है, बल्कि देश की ऐतिहासिक धरोहर एवं उत्कृष्ट वास्तुकला भी दुनिया भर के लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचने में सामर्थ्य हैं.
यह कविता उन सभी बिंदुओं पर प्रकाश डालता है कि वास्तव में भारत की देश भक्ति संपूर्ण विश्व में अनूठा है.
देश में कई प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्मारक है, जो अपनी सुंदरता एवं भव्यता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं. कवी देश भक्ति की भावना, कविता के माध्यम से जागृत कर रहे हैं जो वाकई सराहनीय है और हमें उनकी भावनाओं को और विस्तृत करना चाहिए.
भारत माता
ग्रामवासिनी।
खेतों में फैला है श्यामल
धूल भरा मैला सा आँचल,
गंगा यमुना में आँसू जल,
मिट्टी कि प्रतिमा
उदासिनी।
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन,
अधरों में चिर नीरव रोदन,
युग युग के तम से विषण्ण मन,
वह अपने घर में
प्रवासिनी।
तीस कोटि संतान नग्न तन,
अर्ध क्षुधित, शोषित, निरस्त्र जन,
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन,
नत मस्तक
तरु तल निवासिनी!
स्वर्ण शस्य पर -पदतल लुंठित,
धरती सा सहिष्णु मन कुंठित,
क्रन्दन कंपित अधर मौन स्मित,
राहु ग्रसित
शरदेन्दु हासिनी।
चिन्तित भृकुटि क्षितिज तिमिरांकित,
नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित,
आनन श्री छाया-शशि उपमित,
ज्ञान मूढ़
गीता प्रकाशिनी!
सफल आज उसका तप संयम,
पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम,
हरती जन मन भय, भव तम भ्रम,
जग जननी
जीवन विकासिनी।
Author:- सुमित्रानंदन पंत
वह खून नहीं, पानी है: जोश भर देने वाली देशभक्ति कविता
वह खून कहो किस मतलब का जिसमें उबाल का नाम नहीं।
वह खून कहो किस मतलब का आ सके देश के काम नहीं।।
वह खून कहो किस मतलब का जिसमें जीवन, न रवानी है।
जो परवश होकर बहता है, वह खून नहीं, पानी है।।
उस दिन लोगों ने सही-सही खून की कीमत पहचानी थी।
जिस दिन सुभाष ने बर्मा में मॉंगी उनसे कुरबानी थी।।
बोले, “स्वतंत्रता की खातिर बलिदान तुम्हें करना होगा।
तुम बहुत जी चुके जग में, लेकिन आगे मरना होगा।।
आज़ादी के चरणें में जो, जयमाल चढ़ाई जाएगी।
वह सुनो, तुम्हारे शीशों के फूलों से गूँथी जाएगी।।
आजादी का संग्राम कहीं पैसे पर खेला जाता है।
यह शीश कटाने का सौदा नंगे सर झेला जाता है।।
यूँ कहते-कहते वक्ता की आंखों में खून उतर आया।
मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा दमकी उनकी रक्तिम काया।।
आजानु-बाहु ऊँची करके, वे बोले, “रक्त मुझे देना।
इसके बदले भारत की आज़ादी तुम मुझसे लेना।।
हो गई सभा में उथल-पुथल, सीने में दिल न समाते थे।
स्वर इनकलाब के नारों के कोसों तक छाए जाते थे।।
“हम देंगे-देंगे खून” शब्द बस यही सुनाई देते थे।
रण में जाने को युवक खड़े तैयार दिखाई देते थे।।
बोले सुभाष, “इस तरह नहीं, बातों से मतलब सरता है।
लो, यह कागज़, है कौन यहॉं आकर हस्ताक्षर करता है।।
इसको भरनेवाले जन को सर्वस्व-समर्पण काना है।
अपना तन-मन-धन-जन-जीवन माता को अर्पण करना है।।
पर यह साधारण पत्र नहीं, आज़ादी का परवाना है।
इस पर तुमको अपने तन का कुछ उज्जवल रक्त गिराना है।।
वह आगे आए जिसके तन में खून भारतीय बहता हो।
वह आगे आए जो अपने को हिंदुस्तानी कहता हो।।
वह आगे आए, जो इस पर खूनी हस्ताक्षर करता हो।
मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए जो इसको हँसकर लेता हो।।
सारी जनता हुंकार उठी हम आते हैं, हम आते हैं।
माता के चरणों में यह लो, हम अपना रक्त चढाते हैं।।
साहस से बढ़े युबक उस दिन, देखा, बढ़ते ही आते थे।
चाकू-छुरी कटारियों से, वे अपना रक्त गिराते थे।।
फिर उस रक्त की स्याही में, वे अपनी कलम डुबाते थे।
आज़ादी के परवाने पर हस्ताक्षर करते जाते थे।।
उस दिन तारों ने देखा था हिंदुस्तानी विश्वास नया।
जब लिक्खा महा रणवीरों ने ख़ूँ से अपना इतिहास नया।।
Author:- श्री गोपाल दास व्यास जी
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भारत एक सर्व संपन्न लोकतांत्रिक देश है जहाँ के लोग विश्व के सबसे बड़े संविधान के द्वारा अनुशासित होते है. और अपने देश हित के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते है. उम्मीद करता हूँ देशभक्ति कविता आपको अवश्य पसंद आया होगा.

मैं दिशा शर्मा Focusonlearn.com पर हिंदी कंटेंट राइटर हूँ. मुझे सरकारी योजना, कोर्स एवं स्कालरशिप पर हिंदी में पोस्ट लिखना पसंद है. इस प्लेटफार्म के माध्यम से शिक्षा एवं सरकारी योजना से सम्बंधित जानकारी और स्टेप आपको प्रदान किया जाएगा, जिसका उपयोग दैनिक जीवन में कर सकते है.