मोटिवेशनल कविताएं इंसान में एक उर्जा प्रदान करती हैं और दर्शाती है तू हौसला मत हार, तुझे वह हर मुकाम हासिल होगा तू जो चाहता है. बस तू उठ, चल और हिम्मत मत हार, तेरा मंज़िल तुझे इंतजार कर रहा है.
कहां जाता है जो व्यक्ति जीवन में कभी संघर्ष से परिचित नहीं होता इतिहास गवाह है कि वह करें चर्चित नहीं होता. इसलिए संघर्ष करना अनिवार्य है आगे क्या होगा यह सोचने में हमें समय व्यर्थ नहीं करना है हमें तो बस अपने मुकाम के लिए केवल प्रयत्न करना है.
सभी प्रेरक कविताएं आप को प्रोत्साहित करती हैं की सफलता को पाने के लिए असफलताओं से ना घबराए अपने पथ पर गति मान रहे और अपने प्रयत्न का आनंद उठाए. मेरा दावा है, सफलता 1 दिन आपकी होगी.
रामधारी सिंह दिनकर जी कहते हैं वहम था मेरा कि सारा बाग अपना है तूफान के बाद पता चला सूखे पत्तों पर भी हक हवाओं का था. इस संसार में अगर कुछ अपना है तो वह अपना संघर्ष है इसके सिवाए संसार की सभी वस्तुएँ हमारी उम्मीदों से परे हैं.
प्रेरणादायक कविता के माध्यम से रचनाकार अपना अनुभव आपके साथ किए हैं जब को प्रोत्साहित करेगा कि आप अपने लक्ष्य को कैसे और कितने सरलता से प्राप्त कर सकते हैं.
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Motivational Poem in Hindi | प्रेरणादायक कविता
सलिल कण हूँ, या पारावार हूँ मैं स्वयं छाया, स्वयं आधार हूँ मैं।
सच है, विपत्ति जब आती है कायर को ही दहलाती है।।
सूरमा नहीं विचलित होते, क्षण एक नहीं धीरज खोते।
विघ्नों को गले लगाते हैं, काँटों में राह बनाते हैं।।
मुँह से न कभी उफ़ कहते हैं, संकट का चरण न गहते हैं।
जो आ पड़ता सब सहते हैं, उद्योग निरत नित रहते हैं।।
शूलों का मूल नसाते हैं, बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं।
है कौन विघ्न ऐसा जग में, टिक सके आदमी के मग में।।
ख़म ठोंक ठेलता है जब नर पर्वत के जाते पाँव उखड़।
मानव जब जोर लगाता है, पत्थर पानी बन जाता है।।
गुन बड़े एक से एक प्रखर।
हैं छिपे मानवों के भीतर।।
मेहँदी में जैसी लाली हो, वर्तिका बीच उजियाली हो।
बत्ती जो नहीं जलाता है, रोशनी नहीं वह पाता है।।
Author:- रामधारी सिंह दिनकर
मैथिलीशरण गुप्त प्रेरणादायक प्रसिद्ध कविता
नर हो, न निराश करो मन को कुछ काम करो, कुछ काम करो।
जग में रह कर कुछ नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो।।
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को।
नर हो, न निराश करो मन को संभलो कि सुयोग न जाय चला।।
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला समझो जग को न निरा सपना।
पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलंबन को।।
नर हो, न निराश करो मन को जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ।
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो।।
उठके अमरत्व विधान करो दवरूप रहो भव कानन को।
नर हो न निराश करो मन को निज गौरव का नित ज्ञान रहे।।
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे मरणोत्तर गुंजित गान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे कुछ हो न तज़ो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को।।
प्रभु ने तुमको दान किए सब वांछित वस्तु विधान किए।
तुम प्राप्त करो उनको न अहो फिर है यह किसका दोष कहो ।।
समझो न अलभ्य किसी धन को नर हो, न निराश करो मन को।
किस गौरव के तुम योग्य नहीं कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं।।
जन हो तुम भी जगदीश्वर के सब है जिसके अपने घर के।
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को नर हो, न निराश करो मन को।।
करके विधि वाद न खेद करो निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो।
बनता बस उद्यम ही विधि है मिलती जिससे सुख की निधि है ।।
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को नर हो, न निराश करो मन को।
कुछ काम करो, कुछ काम करो।।
Author:- मैथिलीशरण गुप्त
अवश्य पढ़े,
देशभक्ति पर प्रसिद्ध हिंदी कविता
तितली पर सर्वश्रेष्ठ हिंदी कविता
नरेंद्र वर्मा की फेमस प्रेरक कविता
बैठ जाओ सपनों के नाव में, मौके की ना तलाश करो।
सपने बुनना सीख लो।।
खुद ही थाम लो हाथों में पतवार, माझी का ना इंतजार करो।
सपने बुनना सीख लो।।
पलट सकती है नाव की तकदीर, गोते खाना सीख लो।
सपने बुनना सीख लो।।
अब नदी के साथ बहना सीख लो, डूबना नहीं, तैरना सीख लो।
सपने बुनना सीख लो।।
भंवर में फंसी सपनों की नाव, अब पतवार चलाना सीख लो।
सपने बुनना सीख लो।
खुद ही राह बनाना सीख लो, अपने दम पर कुछ करना सीख लो।
सपने बुनना सीख लो।।
तेज नहीं तो धीरे चलना सीख लो, भय के भ्रम से लड़ना सीख लो।
सपने बुनना सीख लो।।
कुछ पल भंवर से लड़ना सीख लो, समंदर में विजय की पताका लहराना सीख लो,
सपने बुनना सीख लो।।
Author:- नरेंद्र वर्मा
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कविता – सोहन लाल द्विवेदी
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चढ़ती है।
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फ़िसलती है।।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है।
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।।
मेहनत उसकी बेकार नहीं हर बार होती।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।
डुबकियाँ सिंधु में गोताखोर लगाता है।
जा-जा कर खाली हाथ लौट कर आता है।।
मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में।
बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में।।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।
असफ़लता एक चुनौती है, स्वीकार करो।
क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो।।
जब तक न सफल हो, नींद-चैन को त्यागो तुम।
संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम।।
कुछ किये बिना ही जय-जयकार नहीं होती।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।।
Author:- सोहन लाल द्विवेदी
राह में मुश्किल होगी, कविता- नरेंद्र वर्मा
राह में मुश्किल होगी हजार, तुम दो कदम बढाओ तो सही।
हो जाएगा हर सपना साकार, तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।।
मुश्किल है पर इतना भी नहीं, कि तू कर ना सके।
दूर है मंजिल लेकिन इतनी भी नहीं, कि तु पा ना सके
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।।
एक दिन तुम्हारा भी नाम होगा, तुम्हारा भी सत्कार होगा।
तुम कुछ लिखो तो सही, तुम कुछ आगे पढ़ो तो सही
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।।
सपनों के सागर में कब तक गोते लगाते रहोगे, तुम एक राह है चुनो तो सही।
तुम उठो तो सही, तुम कुछ करो तो सही
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।।
कुछ ना मिला तो कुछ सीख जाओगे, जिंदगी का अनुभव साथ ले जाओगे।
गिरते पड़ते संभल जाओगे, फिर एक बार तुम जीत जाओगे
तुम चलो तो सही, तुम चलो तो सही।।
Author:- नरेंद्र वर्मा
रामधारी सिंह दिनकर की सर्वश्रेष्ठ मोटिवेशन कविता
वह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।।
चिनगारी बन गई लहू की बूँद गिरी जो पग से।
चमक रहे, पीछे मुड़ देखो, चरण – चिह्न जगमग – से।।
शुरू हुई आराध्य-भूमि यह, क्लान्ति नहीं रे राही।
और नहीं तो पाँव लगे हैं, क्यों पड़ने डगमग से।।
बाकी होश तभी तक, जब तक जलता तूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।।
अपनी हड्डी की मशाल से हॄदय चीरते तम का।
सारी रात चले तुम दुख झेलते कुलिश निर्मम का।।
एक खेय है शेष किसी विधि पार उसे कर जाओ।
वह देखो, उस पार चमकता है मन्दिर प्रियतम का।।
आकर इतना पास फिरे, वह सच्चा शूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई! मंजिल दूर नहीं है।।
दिशा दीप्त हो उठी प्राप्तकर पुण्य-प्रकाश तुम्हारा।
लिखा जा चुका अनल-अक्षरों में इतिहास तुम्हारा।।
जिस मिट्टी ने लहू पिया, वह फूल खिलायेगी ही।
अम्बर पर घन बन छायेगा ही उच्छवास तुम्हारा।।
और अधिक ले जाँच, देवता इतना क्रूर नहीं है।
थककर बैठ गये क्या भाई ! मंजिल दूर नहीं है।।
Author:- रामधारी सिंह दिनकर
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