चिड़ियों पर कविता का उदेश्य केवल मनोरंजन कराना नही है बल्कि उनके द्वारा बुने गए हौसले या सपनों को आपके सामने उजागर करना है कि बंद पिजड़े से बहार निकलकर क्या करना चाहते है, वे पंछी खुले आसमां में खुद को कैसा महसूस कराना चाहते है आदि. हमारे विद्वानों द्वारा लिखे गए चिड़िया पर आधारित कविता, इसका प्रमाण है आजादी से बढ़कर कोई ख़ुशी नही होती है.
पंछियों के सपनें उनके पंखो को एक नया परिदृश्य दिखता है जिसे आजाद होकर वे पूरा करना चाहते है. poem on birds in Hindi भारतीय कविओं का एक सत्य है जिसे चिडियों पर कविता के माध्यम से आपतक पहुचना चाहते है, ताकि मनुष्य उनके पीड़ा को भलीभांति समझ सके है.
पंछियों पर कविता एक श्रोत है जो उनके भावनाओं को उजागर करता है और बताता है, क्षितिज/आकाशगंगा के अंत तक, बदलो के ऊपर उड़ना उनका मकसद है. ये चंद पिजड़े उनके सपनों को समाप्त नही कर सकते है. जिस दिन वो आजाद होंगे, अपने प्यारी पंखो से सम्पूर्ण गगन को मापेंगे.
मशहूर कवियों द्वरा उल्लेखित सुप्रसिद्ध चिड़िया पर आधारित कविता आपके सामने प्रस्तुत है जिसमे पंछियों के लिए प्रेरणादायक शब्द अंकित है जो दर्शाता है कि आजादी ही उनका सम्पूर्ण शुख है.
चिड़िया पर कविता | poem of birds in Hindi
ये भगवान के डाकिये हैं ।
जो एक महादेश से दूसरे महादेश को जाते हैं।।
हम तो समझ नहीं पाते हैं ।
मगर उनकी लायी चिठि्ठयाँ।।
पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं।
हम तो केवल यह आँकते हैं।।
कि एक देश की धरती।
दूसरे देश को सुगन्ध भेजती है।।
और वह सौरभ हवा में तैरती हुए।
पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।।
और एक देश का भाप दूसरे देश का पानी।
बनकर गिरता है।।
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Author — रामधारी सिंह दिनकर
हाँ पंछी है वो — पंछी पर कविता
हवाओ में पंख फैलाए नीले नभ से तय करते हैं।
जो अपनी दिशाएँ हाँ पंछी हैं वो।।
चँचलता जिनकी नजरों से छलके।
इस पल यहाँ तो अगले पल वहाँ
जो चहके हाँ पंछी हैं वो।।
सुबह सूरज के किरणों के धरती को छुने से पहले ।
जो जग जाएँ हाँ पंछी हैं वो।।
दायरो में जो नहीं बँधते, पिंजरो में जो नहीं रहते ।
अपनी सीमा जो स्वयं तय हैं करते हाँ पंछी हैं वो।।
लक्ष्य जिनका अटल है रहता, सारा जग जिन्हे अपना है लगता।
कहीं कोई फर्क नहीं है दिखता हाँ पंछी हैं वो।।
सीमाएँ जिनके लिए नहीं बनी।
जिन्हे कहीं आने-जाने के लिए कोई वीजा नहीं लगता
हाँ पंछी हैं वो।।
चहचहाहट से जिनके संगीत सा कानो में है बजता।
फिजा सुरमई सी है लगती, हाँ पंछी हैं वो।।
धरा-गगन दोनो से है इनका गहरा नाता ।
उँचाई पर ही अपना आशियाना इन्हे लुभाता
हाँ पंछी हैं वो।।
मौसमों से छेडखानी करते तिनके चुन-चुन अपना घोंसला संजोते
दिशाएँ घूम-घूम दाने चुनते हैं जो दिखते
हाँ पंछी हैं वो।।
हर रोज जैसे कोई नया अभियान हो, सुबह पूरा करने जो निकलते।
शाम ढलने पर ही अपने घोसलों पर लौटते
हाँ पंछी हैं वो।।
प्यारे-प्यारे रंग-रूपों से सजे।
जिनकी शोभा उनके पंखों से ही बढे़
हाँ पंछी हैं वो।।
उम्मीद और हौसले की पहचान हैं जो।
हाँ पंछी हैं वो।।
Author -– ज्योति सिंहदेव
मैं भी अगर एक छोटा पंछी होता – पंछियों पर कविता
मैं भी अगर एक छोटा पंछी होता।
तो बस्ती-बस्ती में फिरता रहता।।
सुन्दर नग-नद-नालों का यार होता।
मस्ती में अपनी झूमता रहता । मैं भी अगर ….।।
आदमी का गुण मुझ में न होता।
ईर्ष्या की आग में न जलाता होता।।
स्वार्थ के युद्ध में न मरता-मारता।
बम्ब-मिसाइल की वर्षा न करता । मैं भी अगर….।।
आंखों में दौलत का काजल न पुतता।
शान के लिए पराया माल न हड़पता।।
हर मानव मेरा हित-बंधु होता।
रंग-रूप पर अपना गर्व करता । मैं भी अगर….।।
तब सारा जग मेरा अपना होता।
पासपोर्ट-वीज़ा कोई न खोजता।।
स्वच्छन्द वन-वन में घूमता होता।
विश्व –भर मेरा अपना राज्य होता । मैं भी अगर ….।।
प्यार के गीत जन-जन को सुनाता।
आवाज़ से अपनी सब को लुभाता।।
मानवता की वेदी पर सिर झुकाता, सागर की उर्मिल का झूला झूलता ।
मैं भी अगर एक छोटा पंछी होता ।।
Author जनार्दन कालीचरण
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पंछी का यही आस विश्वास – चिड़िया पर कविता
पंछी का यही आस विश्वास, पंख पसारे उड़ता जाये।
निर्मल नीरव आकाश, पंछी का यही आस विश्वास।।
पिंजड़े की कारा की काया में, उजियारी अँधियारी छाया में।
चंदा के दर्पण की माया में अजगर काल का उगल रहा है
कालकूट उच्छवास पंछी का यही आस विश्वास।।
भंवराती नदियाँ गहरी बहता निर्मल पानी।
घाट बदलते हैं लेकिन तट पूलों की मनमानी
टूट रहा तन, भीग रहा क्षण, मन करता नादानी।।
निदियारी आँखों में होता, चिर विराम का आभास।
पंछी का यही आस विश्वास।।
किया नीड़ निर्माण, हुआ उसका फिर अवसान।
काली रात डोंगर की बैरी, बीत गया दिनमान।।
डाल पात पर व्यर्थ की भटकन, न हुई निज से पहचान।
सूखे पत्ते झर-झर पड़ते, करते फागुन का उपहास
पंछी का यही आस विश्वास।।
पंख पसारे उड़ता जाये।
निर्मल नीरव आकाश।।
Author — Unknown
सर्वश्रेष्ठ चिड़िया पर हिंदी कविता
जुबाँ पे शब्द नही, पर दिलों में अहसास तो होता है।
पंक्षियों का कोई घर नही, पूरा आसमाँ तो होता है।।
तिनका-तिनका चुनकर घोंसला बनाते है।
अक्सर पेडों पर अपना आशियाना सजाते है।।
तेज हवाएँ उड़ा ले जाती है उनका घोंसला।
पर नही ले जा सकती उनके मन का हौंसला।।
फिर से चुनते है, फिर से बुनते हैं।
अपने बच्चों को जीवन देते है।।
क्यों नही सीखते हम उनसे ये सब।
आपस में हम लड़ते रहते हैं।।
मेरा मेरा करके न जाने क्यों जलते रहते है।
हमसे अच्छे तो ये पक्षी है।।
निःशब्द रहकर बहुत कुछ कहते हैं, जीवन तो इनका जीवन है,
हम तो बस यूँ ही जीकर मरतें रहते हैं।।
Author — Nidhi Agarwal
चिड़िया निकली – कविता
चिड़िया निकली है आज लेने को दाना।
समय रहते फिर है उसे घर आना।।
आसान न होता ये सब कर पाना।
कड़ी धूप में करना संघर्ष पाने को दाना।।
फिर भी निकली है दाने की तलाश में।
क्योकि बच्चे है उसके खाने की आस में।।
आज दाना नही है आस पास में।
पाने को दाना उड़ी है दूर आकाश में।।
आखिर मेहनत लायी उसकी रंग मिल गया।
उसे अपने दाने का कण पकड़ा।।
उसको अपनी चोंच के संग।
ओर फिर उड़ी आकाश में जलाने को।।
अपने पंख भोर हुई पहुँची अपने ठिकाने को।
बच्चे देख रहे थे राह उसकी आने को।।
माँ को देख बच्चे छुपा ना पाए अपने मुस्कुराने को।
माँ ने दिया दाना सबको खाने को।।
दिन भर की मेहनत आग लगा देती है।
पर बच्चो की मुस्कान सब भुला देती है।।
वो नन्ही सी जान उसे जीने की वजह देती है।
बच्चो के लिए माँ अपना सब कुछ लगा देती है।।
फिर होता है रात का आना सब सोते है।
खाकर खाना चिड़िया सोचती है।।
क्या कल आसान होगा पाना दाना।
पर अपने बच्चो के लिए उसे कर है दिखाना।।
अगली सुबह चिड़िया फिर उड़ती है लेने को दाना।
गाते हुए एक विस्वास भरा गाना।।
Author — आशीष राजपुरोहित
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निष्कर्ष
चिड़िया पर कविता यानि पंछियों के सपनों जो आजादी के लिए व्याकुल है उसके विषय में पढ़कर आपको कैसा अनुभव हुआ. यह हमारे साथ अवश्य शेयर करे. क्या आपको भी लगता है कि आजादी के बिना जीवन का कोई अर्थ नही है? अगर हाँ, poem on birds in hindi के सम्बन्ध में कमेंट अवश्य करे.

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