माँ पर प्रसिद्ध कवियों की रचनाएँ के अनुसार माँ शब्द दुनिया के सबसे आसान लब्ज है, जिसे पुरी कायनात मिलकर भी परिभाषित नहीं कर सकती, वो शब्द है माँ. इस शब्द से बड़ा पूरे ब्रह्मांड में कोई ऐसा शब्द नहीं है, जो पूर्णतः माँ शब्द का अर्थ निकाल सके. इस खुबसूरत शब्द को माँ पर कविता के माध्यम से परिभाषित करने की कोशिश कवियों द्वारा किया गया है जो माँ के लिए एक शब्द में दर्शाया गया है.
हांलाकि, दुनिया की किसी भी कलम में इतनी ताकत नहीं है की वह माँ को परिभाषित कर दे और उसकी महत्व समझा दे. माँ पवित्रता, त्याग, ममता, प्यार की वह मूर्ति है जिसका कर्ज कभी भी चुकाया नहीं जा सकता है. एक माँ ही ऐसा शब्द है जो पूरी दुनियाँ में अजेव है.
माँ के लिए एक शब्द इस प्रकार है:
एक माँ ही है जो –
- सारे दुखों को हर लेती है.
- बीमार रहते हुए भी सारे काम कर लेती है.
- लाख ग़लतियों को माफ कर देतीं हैं.
- खुद की जान दांव पर रख कर जन्म देती है.
- अपनी ख़्वाहिशों को छोड़ कर अपने बच्चों की ख़ुशियों को पूरा करने की दुआ करती है.
- थोड़ी सी तबियत खराब होने पर पूरा घर सिर पर उठा लेती है
- किस्मत वालों को मिलती है.
- कभी कुमाता नही होती है.
- अपने बच्चे को कभी भूखा नही सुलाती है.
- जिसका प्यार कभी कम नही होता है.
- अपने बच्चे के आँखों में आंसू देखना पसंद नही करती.
- जिसके लिए पूरी दुनियाँ तरसती है.
वो माँ ही है जिसे अपने बच्चे के सिवाए किसी से भी डर नही. वो माँ ही है.
माँ के जितना मूल्यवान, इस संसार में कोई वस्तु नहीं. माँ ही जीवन है, माँ ही दुनिया है, माँ ही खुशी है, और माँ ही मेरी तिजोरी है. मेरे पास इतना शब्द नहीं कि मैं माँ की परिभाषा लिख सकूं. माँ पर प्रसिद्ध कवियों की रचनाएँ यानि प्रसिद्ध कवियों द्वारा माँ शब्द पर कुछ सर्वश्रेष्ठ कविताएं निचे लिखा हुआ है. उम्मीद करता हूं कि आपको पसंद आएगा.
यहाँ पढ़े,
मेरी प्यारी माँ पर कविता: माँ के लिए चंद शब्द
अम्मा की गोदी:
जब आंख खुली तो अम्मा की गोदी का एक सहारा था।
उसका नन्हा सा आंचल मुझको भूमण्डल से प्यारा था।।
उसके चेहरे की झलक देख चेहरा फूलों सा खिलता था।
उसके स्तन की एक बूंद से मुझको जीवन मिलता था।।
हाथों से बालों को नोंचा पैरों से खूब प्रहार किया।
फिर भी उस मां ने पुचकारा हमको जी भर के प्यार किया।।
मैं उसका राजा बेटा था वो आंख का तारा कहती थी।
मैं बनूं बुढापे में उसका बस एक सहारा कहती थी।।
उंगली को पकड़ चलाया था पढने विद्यालय भेजा था।
मेरी नादानी को भी निज अन्तर में सदा सहेजा था।।
मेरे सारे प्रश्नों का वो फौरन जवाब बन जाती थी।
मेरी राहों के कांटे चुन वो खुद गुलाब बन जाती थी।।
मैं बडा हुआ तो कॉलेज से इक रोग प्यार का ले आया।
जिस दिल में मां की मूरत थी वो रामकली को दे आया।।
शादी की पति से बाप बना अपने रिश्तों में झूल गया।
अब करवाचौथ मनाता हूं मां की ममता को भूल गया।।
हम भूल गये उसकी ममता मेरे जीवन की थाती थी।
हम भूल गये अपना जीवन वो अमृत वाली छाती थी।।
हम भूल गये वो खुद भूखी रह करके हमें खिलाती थी।
हमको सूखा बिस्तर देकर खुद गीले में सो जाती थी।।
हम भूल गये उसने ही होठों को भाषा सिखलायी थी।
मेरी नीदों के लिए रात भर उसने लोरी गायी थी।।
हम भूल गये हर गलती पर उसने डांटा समझाया था।
बच जाउं बुरी नजर से काला टीका सदा लगाया था।।
हम बडे हुए तो ममता वाले सारे बन्धन तोड आए।
बंगले में कुत्ते पाल लिए मां को वृद्धाश्रम छोड आए।।
उसके सपनों का महल गिरा कर कंकर-कंकर बीन लिए।
खुदग़र्जी में उसके सुहाग के आभूषण तक छीन लिए।।
हम मां को घर के बंटवारे की अभिलाषा तक ले आए।
उसको पावन मंदिर से गाली की भाषा तक ले आए।।
मां की ममता को देख मौत भी आगे से हट जाती है।
गर मां अपमानित होती धरती की छाती फट जाती है।।
घर को पूरा जीवन देकर बेचारी मां क्या पाती है।
रूखा सूखा खा लेती है पानी पीकर सो जाती है।।
जो मां जैसी देवी घर के मंदिर में नहीं रख सकते हैं।
वो लाखों पुण्य भले कर लें इंसान नहीं बन सकते हैं।।
मां जिसको भी जल दे दे वो पौधा संदल बन जाता है।
मां के चरणों को छूकर पानी गंगाजल बन जाता है।।
मां के आंचल ने युगों-युगों से भगवानों को पाला है।
मां के चरणों में जन्नत है गिरिजाघर और शिवाला है।।
हर घर में मां की पूजा हो ऐसा संकल्प उठाता हूं।
मैं दुनियां की हर मां के चरणों में ये शीश झुकाता हूं।।
Author:- डॉ. सुनील जोगी
माँ के संघर्ष पर कविता
माँ कल्यान: माँ पर कविता हिंदी में
बचपन में अच्छी लगे यौवन में नादान।
आती याद उम्र ढ़ले क्या थी माँ कल्यान।।
करना माँ को खुश अगर कहते लोग तमाम।
रौशन अपने काम से करो पिता का नाम।।
विद्या पाई आपने बने महा विद्वान।
माता पहली गुरु है सबकी ही कल्यान।।
कैसे बचपन कट गया बिन चिंता कल्यान।
पर्दे पीछे माँ रही बन मेरा भगवान।।
माता देती सपन है बच्चों को कल्यान।
उनको करता पूर्ण जो बनता वही महान।।
बच्चे से पूछो जरा सबसे अच्छा कौन।
उंगली उठे उधर जिधर माँ बैठी हो मौन।।
माँ कर देती माफ़ है कितने करो गुनाह।
अपने बच्चों के लिए उसका प्रेम अथाह।।
Author:- सरदार कल्याण सिंह
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माँ पर प्रसिद्ध हिंदी कविता
दुनिया की सबसे सुन्दर माँ पर कविता, माँ के प्रति स्नेह, प्रेम, करुणा आदि को उजागर करता है. माँ शब्द के समान दुनिया में कोई शब्द उपलब्ध नही है. यह प्यारी कविता मेरी माँ को समर्पित है:
hum ek shabd hai to wo puri bhasha hai lyrics:
हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है।
हम कुंठित हैं तो वह एक अभिलाषा है
बस यही माँ की परिभाषा है।।
हम समुंदर का है तेज तो वह झरनों का निर्मल स्वर है।
हम एक शूल है तो वह सहस्त्र ढाल प्रखर।
हम दुनिया के हैं अंग, वह उसकी अनुक्रमणिका है।
हम पत्थर की हैं संग वह कंचन की कृनीका है।।
हम बकवास हैं वह भाषण हैं हम सरकार हैं वह शासन हैं।
हम लव कुश है वह सीता है, हम छंद हैं वह कविता है।।
हम राजा हैं वह राज है, हम मस्तक हैं वह ताज है।
वही सरस्वती का उद्गम है रणचंडी और नासा है।।
हम एक शब्द हैं तो वह पूरी भाषा है।
बस यही माँ की परिभाषा है।।
Author:- शैलेश लोधा
यह कदंब का पेड़: एक कविता हर माँ के नाम
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।।
ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।।
तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।।
वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हें बुलाता।।
सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती।
मुझे देखने काम छोड़ कर तुम बाहर तक आती।।
तुमको आता देख बांसुरी रख मैं चुप हो जाता।
पत्तों में छिपकर धीरे से फिर बांसुरी बजाता।।
गुस्सा होकर मुझे डांटती, कहती “नीचे आजा”।
पर जब मैं ना उतरता, हंसकर कहती “मुन्ना राजा”।।
“नीचे उतरो मेरे भैया तुम्हें मिठाई दूंगी।
नए खिलौने, माखन-मिसरी, दूध मलाई दूंगी”।।
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।।
तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।।
तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।।
तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।।
इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।।
Author:- सुभद्रा कुमारी चौहान
माँ के लिए कविता, जो सबका प्रिय है
आया जो धरती पे इसमें माँ तेरा ही उपकार है।
बढ़ रहा हूँ हर पल क्योंकि तेरा ही संस्कार है।।
तेरे आँचल की छांव तो वृक्ष भी मांगते है।
हम तो उसका सुकून बचपन से ही जानते है।।
जब मुझे भूख लगती तब बोल नही पाता था मैं।
तूने एक के जगह दो खिला दी ये भी जोड़ नही पाता था मैं।।
कभी जो मैं गिरता था तो सहला देती थी तू।
आँखों से आँसू चुराने के लिए बहला देती थी तू।।
कम में ही जैसे भी गुजारा कर लेती थी।
खुशियों की भूख माँ आँखों में ही पढ़ लेती थी।।
अपने अरमानों को भूलकर जिंदगी काट ली तुमने।
अपने हिस्से की सारी खुशियाँ बाँट दी तुमने।।
संघर्षो से लड़कर आगे बढ़ना सिखाया।
बुलंदियों के शिखर पे चढ़ना सिखाया।।
जब भी मायूस हुआ तूने हँसना सिखाया।
जिंदगी के सभी पाठों को पढ़ना सिखाया।।
Author:- गौरव अग्रहरी
माँ पर कविता शरांश
दुनिया से अपने बच्चो को रुपरू कराने वाली माँ और दुनिया का रुल सिखाने वाला पिता सबसे महान हस्ती है. इस पोस्ट में माँ पर प्रसिद्ध कवियों की रचनाएँ के माध्यम से मातृत्व पर कविता यानि माँ के लिए एक शब्द उनके चरणों में समर्पित है. माँ स्वयं में परमात्मा है. जो उसे समझ जाता है वो परमात्मा का दर्शन कर लेता है.
माँ की महिमा पर कविता के माध्यम से माँ के सन्दर्भ में कुछ खुबसूरत लम्हों को उजागर किया गया है. जिससे सभी परिचित है लेकिन उन्हें अभाष नही है. इसलिए, यहाँ माँ पर प्रसिद्ध कवियों की रचनाएँ शेयर किए है. उम्मीद है आपको भी पसंद आयेगा.

मैं दिशा शर्मा Focusonlearn.com पर हिंदी कंटेंट राइटर हूँ. मुझे सरकारी योजना, कोर्स एवं स्कालरशिप पर हिंदी में पोस्ट लिखना पसंद है. इस प्लेटफार्म के माध्यम से शिक्षा एवं सरकारी योजना से सम्बंधित जानकारी और स्टेप आपको प्रदान किया जाएगा, जिसका उपयोग दैनिक जीवन में कर सकते है.