वर्षा ऋतू पृथ्वी की सबसे प्यारी और खुबसुरत ऋतू मानी जाती है. यह मौसम पृथ्वी को खुबसूरत श्रृंगार प्रदान करती है. धरती पर रहने वाले मनुष्यों से लेकर, पेड़-पौधे, नदियाँ, जीव-जंतु, फसलें, आदि में एक कभी न ख़त्म होने वाली ख़ुशी का विकास होता है. इस मौसम में चारों तरफ हरियाली ही हरियाली छाई रहती है.
बारिश के दिनों में मोरों का नाचना, चिड़ियों को बादल के साथ उड़ना देख मन हर्ष से आनंदित हो जाता है. बाग- बगीचें फल-फुल से सज जाते है. प्रकृति अपनी श्रृंगार के बाँहों में सिमटी होती है ऐसा लगता है जैसे मानो स्वर्ग का आगमन पृथ्वी पर हुआ है. इसलिए, बारिश पर कविता के माध्यम से कुछ शब्दों की खूबसूरती बयाँ कर रहे है.
बारिश की पहली बूंद जब शारीर पर पड़ती है, तो एक खुशनुमा शांति देती है जिसकी चाहत मनो वर्षो से हो. ऐसे ही विचारधारा प्रसिद्ध कवियों द्वारा बारिश पर कविता के माध्यम से दिया है जो वास्तव में बारिश के खुबसूरत लम्हों की याद दिलाती है.
Poem on Rain in Hindi के जरिए कुछ प्रेरक बारिश पर कविता, जो मन आनंदित करने के उदेश्य से दिया है. उम्मीद है आपको पसंद आएगा.
प्रसिद्ध पहली बारिश पर कविता | Famous Poem on Rain in Hindi
मेरे बचपन की बारिश बड़ी हो गयी – बरसात पर कविता
ऑफिस की खिड़की से जब देखा मैने, मौसम की पहली बरसात को।।
काले बादल के गरज पे नाचती, बूँदों की बारात को।।
एक बच्चा मुझसे निकालकर भागा था भीगने बाहर।
रोका बड़प्पन ने मेरे, पकड़ के उसके हाथ को।।
बारिश और मेरे बचपने के बीच एक उम्र की दीवार खड़ी हो गयी।
लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी।।
वो बूँदें काँच की दीवार पे खटखटा रही थी।
मैं उनके संग खेलता था कभी, इसीलिए बुला रही थी।।
पर तब मैं छोटा था और यह बातें बड़ी थी।
तब घर वक़्त पे पहुँचने की किसे पड़ी थी।।
अब बारिश पहले राहत, फिर आफ़त बन जाती है।
जो गरज पहले लुभाती थी,वही अब डराती है।।
मैं डरपोक हो गया और बदनाम सावन की झड़ी हो गयी।
लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी।।
जिस पानी में छपाके लगाते, उसमे कीटाणु दिखने लगा।
खुद से ज़्यादा फिक्र कि लॅपटॉप भीगने लगा।।
स्कूल में दुआ करते कि बरसे बेहिसाब तो छुट्टी हो जाए।
अब भीगें तो डरें कि कल कहीं ऑफिस की छुट्टी ना हो जाए।।
सावन जब चाय पकोड़ो की सोहबत में इत्मिनान से बीतता था।
वो दौर, वो घड़ी बड़े होते होते कहीं खो गयी।।
लगता है मेरे बचपन की बारिश भी बड़ी हो गयी।।
Author – अभिनव नागर
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बादल घिर आए – बारिश पर कविता हिंदी में
बादल घिर आए, गीत की बेला आई।
आज गगन की सूनी छाती।।
भावों से भर आई।
चपला के पावों की आहट।।
आज पवन ने पाई।
डोल रहें हैं बोल न जिनके।।
मुख में विधि ने डाले।
बादल घिर आए, गीत की बेला आई।।
बिजली की अलकों ने अंबर।
के कंधों को घेरा।।
मन बरबस यह पूछ उठा है।
कौन, कहाँ पर मेरा।।
आज धरणि के आँसू सावन।
के मोती बन बहुरे।।
घन छाए, मन के मीत की बेला आई।
बादल घिर आए, गीत की बेला आई।।
Author – हरिवंशराय बच्चन
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बरसा बरस रही चहूँ ओर – बरसात पर कविता
बरसा बरस रही चहूँ ओर।
घन गरजत हरषत सखी जियरा, नाचत बन में मोर ।।
पीहूं-पीहूं रटत पपैया प्यारा, हँसत-हँसावत श्याम हमारा ।
श्यामा परम मनोहर मनहर, प्रीतम नंद किशोर ।।
दादुर धुनि सुनी-सुनी सुख उपजत, कोयल मधुर स्वरन ते कूंकत ।
राधा का राजा कृष्णा प्यारा, लेवे मन चित चोर ।।
बिजरी चमकत हे गिरधारी, बीती पल-पल रैना सारी ।
तू मन मोहन ईश्वर मेरा, मैं तेरी गणगौर ।।
गोपीनाथ राधिका प्यारी, सुखी संत महिमा लखी भारी ।
सदा सुखी शिवदीन भजन कर, होकर प्रेम विभोर ।।
Author – शिवदीन राम जोशी
रिमझिम बारिश पर कविता
बरसत बरषा परम सुहावन ।
रिमझिम रिमझिम बरस रहा है,ये आया सखि सावन ॥
बादर उमड़ी घुमड़ी सखि छाये, दादुर कोयल गीत सुनाये ।
नांचत मोर पिहूँ पी रटि रटि, मौसम सुन्दर उर मन भावन ॥
दामिनी दमकत चमकत चम-चम, नांच रही परियां सखि छम-छम ।
साज बाज सुर ताल राग रंग,गंध्रिप* लगे गुनी जन गावन ॥
नाना पक्षी हंस चकोरा, हरन करत मन चातक मौरा ।
ये वृन्दावन लहर निराली, यमुना गंगा अनुपम पावन ॥
कहे शिवदीन मनोहर जोरी, कृष्ण राधिका चन्द्र चकोरी ।
धन्य-धन्य वृजराज छटा छवि, वृजजन जन के मन हर्षावन ॥
Author – शिवदीन राम जोशी
दिशाएँ खो गयीं तम में – बरसात पर प्रेम कविता
दिशाएँ खो गयीं तम में।
धरा का व्योम से चुपचाप आलिंगन ।।
धरा ऐसी कि जिसने नव।
सितारों से जड़ित साड़ी उतारी है।।
सिहर कर गौर-वर्णी स्वस्थ।
बाहें गोद में आने पसारी हैं।।
समायी जा रही बनकर।
सुहागिन, मुग्ध मन है और बेसुध तन ।।
कि लहरों के उठे शीतल।
उरोजों पर अजाना मन मचलता है।।
चतुर्दिक घुल रहा उन्माद।
छवि पर छा रही निश्छल सरलता है।।
खिँचे जाते हृदय के तार।
अगणित स्वर्ग-सम अविराम आकर्षण ।।
बुझाने छटपटाती प्यास।
युग-युग की, हुआ अनमोल यह संगम।।
जलद नभ से विरह-ज्वाला।
बुझाने को सघन होकर झरे झमझम।।
निरन्तर बह रहा है स्रोत।
जीवन का, उमड़ता आज है यौवन ।।
Author – महेंद्र भटनागर
मौसम की पहली बारिश पर कविता
छ्म छम छम दहलीज़ पे आई मौसम की पहली बारिश।
गूंज उठी जैसे शहनाई मौसम की पहली बारिश।।
जब तेरा आंचल लहराया
सारी दुनिया चहक उठी
बूंदों की सरगोशी तो
सोंधी मिट्टी महक उठी
मस्ती बनकर दिल में छाई मौसम की पहली बारिश।।
रौनक़ तुझसे बाज़ारों में
चहल पहल है गलियों में
फूलों में मुस्कान है तुझसे
और तबस्सुम कलियों में
झूम रही तुझसे पुरवाई मौसम की पहली बारिश।।
पेड़-परिन्दें, सड़कें, राही
गर्मी से बेहाल थे कल
सबके ऊपर मेहरबान हैं
आज घटाएं और बादल
राहत की बौछारें लाई मौसम की पहली बारिश।।
आंगन के पानी में मिलकर
बच्चे नाव चलाते हैं
छत से पानी टपक रहा है
फिर भी सब मुस्काते हैं
हरी भरी सौग़ातें लाई मौसम की पहली बारिश।।
सरक गया जब रात का घूंघट
चांद अचानक मुस्काया
उस पल हमदम तेरा चेहरा
याद बहुत हमको आया
कसक उठी बनकर तनहाई मौसम की पहली बारिश।।
Author – देवमणि पांडे
बारिश पर कबिता उन खुबसूरत लम्हों को याद दिलाता है मानो जैसे बारिश की हल्की बुँदे शारीर को छूकर भींगने का आनंद दिला रहा है. कवि इन कबिताओं के माध्यम से एहसास दिलाना चाहते है कि बारिश पृथ्वी का वो अमृत है जिसके एहसास मात्र से ही पूरा शारीर खुशियों से झुमने लगता है. उम्मीद है आपको पसंद आया होगा. यदि मन में कोई संदेह हो तो कृपया हमें कमेंट अवश्य करे.

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